जीवन का आधार
जीवन का आधार



जीवित भोजन,नियमित व्यायाम तथा दया ,क्षमा, प्रेम एवं प्रार्थना सहित सम्यक अध्यन ही जीवन का आधार है। जो आपके आचरण को शांत और संयमित रखते हुए आपको व्यहारकुशल बनाता है और क्रोध को भी आपसे दूर रखता है। अपना कल सँवारने और सुधारने का सबसे आसान एवं सरल तरीका यह है ,कि आप यह जान लो कि आज आपने क्या गलत किया है, और आज आपको जो करना था वह नहीं किया है। आप केवल अपना आज सुधार लो , आपका भविष्य काफी उज्वल हो जाएगा। इसके लिए यदि आप आज से ही यहाँ उद्धरित बिन्दुओं पर थोड़ा सा भी गौर करते हुए अपना समय देंगे तो निश्चित ही आपका जीवन शानदार होगा।
जीवित भोजन
आज कल व्यक्ति प्रकृति से दूर होता जा रहा है , खान - पान में भी लोग प्रकृति एवं मौसम के अनुसार नहीं चलते हैं। विभिन्न ऋतुओं में अनेक प्रकार की सब्जियाँ , फल एवं अन्य प्राकृतिक खाद्य पदार्थ उत्पन्न जो हमारे स्वस्थ के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं। ऋतुओं के अनुसार उत्पन्न होने वाले प्रत्येक वास्तु में मानव शरीर को स्वस्थ रखने तत्व मौजूद रहते हैं। लोगों को कृत्रिम भोजन से दूरी बना के रखना चाहिए।
यहाँ जीवित भोजन से हमारा आशय हरे एवं पत्तेदार सब्जियाँ , अंकुरित अन्न , फल एवं अन्य मौसमी प्राकृतिक खाद्यपदार्थों से है। अंकुरित अन्नों के अतिरिक्त जो भी प्राकृतिक खाद्य पदार्थ हम बिना पकाए कहते है , वे भी जीवित भोजन की श्रेणी में आते हैं।
नियमित व्यायाम
सच्चा आनन्द तो शरीर , मन और बुद्धि की स्वस्थ्यता पर निर्भर होता है। हमारी आत्मा परमेश्वर का अंश है , शरीर ,आत्मा और परमात्मा को जोड़ना ही योग है। योग व्यक्ति के गुणों को विकसित करता है। नियमित योग एवं व्यायाम से हमारे शरीर में अनुशासन आता है, उत्साह बना रहता है ,कर्तव्य बोध आता है , शरीर स्वस्थ - सुडौल बना रहता है ,जीवन सुखी, संतोषमय और सरल बन जाता है।
मौन :
मौन का अर्थ है , बाहर और अंदर से शांत होना। मौन वाणी के संयम से होता है। मौन के अभ्यास से ज्ञान का अर्जन , शक्ति का सृजन,समस्यों का समाधान ,वाणी पर नियंत्रण तथा पर पीड़ा हरने की क्षमता आदि गुण धीरे - धीरे अपने आप आ जाते है। मौन साधना का अभ्यास दिन में कुछ समय से प्रारम्भ करके धीरे - धीरे बढ़ाना चाहिए। इससे हमें जवजीवन मिलेगा तथा जीवन में गहराई और स्थिरता आएगी। मौन सर्वोत्तम भाषण है। इसलिए जब हम किसी के मौन को भांग करते हैं , हमें इसा बात का ध्यान रखना होगा कि हमारा वार्तालाप उसके मौन की अपेक्षा बेहतर हो।
" मौन रह कर दूसरों की सुनो ; तुम्हारे शिष्टाचार की प्रशंसा की जाएगी। युवको जरुरत पड़ने पर बोलो किन्तु दो बार पूंछे जाने के बाद ही। उस व्यक्ति की तरह , जो बहुत जानता ,किन्तु कम बोलता है। तुम संक्षिप्त , बल्कि सारगर्भित भाषण दो।बड़ों के बीच विनयी बनो और बूढ़ों के सामने कम बोलो। " ( प्रवक्ता ३२ : ९ - १३ )
कर्ता हीन कर्म - मौन है
अन्नंत में प्रेम - मौन है
शब्द हीन ज्ञान - मौन है
हर साँस में प्रार्थना - मौन है
प्रकृति के संग मुस्कुराना - मौन है

शब्द
हर शब्द मंत्र है।
शब्दों पर नियंत्रण रखें।
शब्दों के प्रति सजग रहें।
शब्द बहुत अच्छी दवा हैं।
शब्द बहुत ही शक्तिशाली होते हैं।
प्यार भरे शब्दों से दुःख दूर हो जाता है।
शब्दों से ही हम दूसरों को अपना दोस्त और दुशमन बना लेते हैं।
शब्द शहद से मीठे और मिर्च से भी तीखे होते हैं चुनाव आपको करना है।
शब्द ,कैसे बोले जाएं , और कैसे शब्द बोले जाएं , इसी में ही शब्दों की सार्थकता है।
शब्दों के घाव असहनीय होते हैं, जिन्हें भरने में काफी वक्त लगता है। जिसकी दवा केवल प्रेम है।
" अपने मुँह को अश्लील बातों का आदि ना बनने दो ,
क्यूंकि इस प्रकार तुम शब्दों द्धारा पाप करते हो " ( प्रवक्ता २२ : १७ )

जीभ
जीभ हमारे जीवन की पतवार है।
जीभ पर नियंत्रण रखें , जरुरत पड़े तो इसे दंड दो।
अपने जीभ और मुँह को अपने वश में रखें ,इन्हें वश में रखना आसान है ,प्रयास तो करें।
अगर आप अपनी जीभ को वश में रखते हैं ,तो आप जीवन में हर चीज पर नियंत्रण रख सकते हैं।
"जीभ फिसलने अपेक्षा पर फिसलना अच्छा है ,दुष्टों इस प्रकार जल्दी हो जाता है। बेमौके की बात अप्रिय व्यक्ति की तरह होती है ,वह मूर्खों के मुँह से निकलती है। " ( प्रवक्ता २० : २० - २१ )
" जो अश्लील बातचीत का आदि बन , वह जीवन भर सभ्य नहीं बनेगा। " ( प्रवक्ता २२ : २० )
" बोलने से सम्मान और अपमान दोनों मिलते हैं ,
जीभ मनुष्य के पतन का कारण बनती है। " ( प्रवक्ता ५ : १५ )
चिंता
चिंता वह अग्रिम ब्याज है ,जो हम अपने जीवन में कोई भी समस्या उत्पन्न होने से पहले ही, अपने को देते हैं। आज की चिंता हमें आने वाले कल के दुःखों से छुटकारा नहीं दिला सकती हैं। परन्तु उन चिंताओं का असर हमारी आज की जिंदगी पर अवश्य पड़ेगा।
हर इंसान अपनी सेहत,अपना परिवार,अपने माता पिता ,अपने कामकाज और जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से चलाने के लिए चिंतित रहता है , और होना भी स्वाभिक है।
दरसल , हर आम इंसान चार प्रकार की चिंता करता है।
१- काल्पनिक चिन्ताएँ: यह वे चिन्ताएं हैं जो हमारे जीवन घटती ही नहीं हैं। जो कुल चिंताओं का ४० % हैं। २- असंभव चिन्ताएँ: यह वह चिंताएं हैं जिनका समाधान असंभव है। जो कुल चिंताओं का ३० % हैं।
३- अनावश्यक चिन्ताएँ : ये वो छोटी - छोटी अनावश्यक चिंताएं हैं। जो कुल चिंताओं का २२ % हैं। ४- आवश्यक एवं जरुरी चिन्ताएँ : ये हमारे जीवन की कुछ जरुरी चिन्ताएँ हैं। जो कुल चिंताओं का ८ % हैं।
इस प्रकार आपने देखा की हमारे जीवन में केवल ८% चिंताएं ही आवश्यक एवं हमारे लिए जरुरी हैं , जिनके लिए हमें कुछ चिंता करना आवश्यक है , बाकी ९२ % हमारी चिन्ताएँ बेकार और अनावश्यक हैं , जिनमें ही हमारा अधिकांश बहुमूल्य समय नष्ट हो जाता है। अनावश्यक चिन्ताएँ हमारे जीवन की भयंकर बर्बादी हैं।
यह अनावश्यक चिन्ताएँ हमारे समय ,शक्ति और सेहत को भरी नुकसान पहुंचती हैं। कभी - कभी तो इनसे हमारे सोचने की क्षमता भी जवाब दे जाती है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ये अनावश्यक चिंताएं हमारे ऊपर शासन ना करने पाएं।
चिंता करने से आपको , संतरे के पेड़ से सेब नहीं मिलेंगें। हमें जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपने आप को ईश्वर के प्रेमपूर्ण संरक्षण में समर्पित करके पूर्ण विश्वास के साथ प्रार्थना करना चाहिए।
क्रोध
क्रोध मन का कैंसर है।
क्रोध मनुष्य को शक्तिहीन एवं विचारशून्य कर देता है।
क्रोध एक विनाशकारी ,घातक और राख कर देने वाला विकार है।
जो व्यक्ति क्रोध का दास होता है, वह जीवन की जंग हार जाता है।
क्रोध हमारे मस्तिष्क , स्नायु - तंत्र और खून को विकृत कर देता है।
क्रोध उस व्यक्ति में उत्पन्न होता है, जो अपने शत्रुओं के बारे में चिंतन करता है
क्रोध शांति भांग कर देता है, प्रेमभाव नष्ट कर देता है ,घृणा उत्पन्न करता है ,यह समस्त बुराई का सार है।
साधारण सी दुर्भावना भी क्रोध को तीव्र द्धेष में बदल देती है। तथा क्रोध - भाव को दोहराने से द्धेष में वृद्धि होती है।
क्रोध मन तथा आत्मा के सभी गुणों को तहस नहस कर देता है , उनको कमजोर बना कर ख़त्म कर देता है।
क्रोध की शुरुआत बेकार की गप - शप से प्रारम्भ हो कर निंदा, आलोचना ,गली-गलौज ,खीझ के बाद अंत लड़ाई - झगडे में तब्दील हो जाता है।
क्रोध को वश में करने के उपाय :
जब क्रोध प्रकट होने का प्रयत्न है , तो मौन हो जाएँ।
जिस व्यक्ति कारण क्रोध आए ,उसे तत्काल क्षमा कर दें।
क्रोध आने पर उस स्थान से थोड़ी देर हट जाना ही बेहतर है।
प्रार्थना, भक्ति और साधना से क्रोध को निर्मूल नष्ट किया जा सकता है।
क्षमा ,दया,धैर्य ,सहनशीलता ,विनम्रता ,प्रेम ,विवेक तथा अन्य सद्गुणों से क्रोध का शमन होता है।
स्वाध्याय
स्वाध्याय से ज्ञान , कर्म और भक्ति में समन्वय होआ है।
स्वाध्याय से ज्ञान का विकास, स्वयं पर आत्मविश्वास और विवेक जाग्रत होता है।
स्वाध्याय से जीव , जगत और परमात्मा में उचित सम्बन्ध स्थापित होने का मार्ग प्रशस्थ होता है।

स्वर्णिम नियम
" दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो , तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।
यही संहिता और नबियों की शिक्षा है " ( मत्ती ७ : १२ )

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