प्रार्थना
प्रार्थना
प्रार्थना क्या है ?
प्रायः हम लिखी हुई या याद की हुई प्रार्थना करते हैं , और उन्ही को ही दोहराते हैं , यह अच्छी बात है। लोगों को अक्सर शिकायत रहती है कि वे अपने घर पर नियमित और प्रतिदिन एक निश्चित समय पर प्रार्थना तो करते हैं , नियमानुसार अपने धार्मिक स्थलों जैसे मन्दिर ,मस्जिद ,गिरजाघर और गुरूद्वारे में भी जा कर पूजा ,आराधना भी करते हैं, परन्तु फिर भी ईश्वर उनकी प्रार्थना नहीं सुनता है, उनकी प्रार्थना पर ईश्वर गौर नहीं करता है । उनके जीवन में पूजा और प्रार्थना का कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता है। उनकी परेशानियाँ कम होने का नाम नहीं लेती हैं। ऐसा क्यों होता है। वे समझ नहीं पते हैं।
वास्तव में जब हम प्रार्थना करते हैं ,तब क्या हम परमेश्वर का अनुभव अपने दिल में करते हैं,अपने ह्रदय में करते हैं , क्या हमारी प्रार्थना का स्रोत हमारा ह्रदय है ? क्या प्रार्थना के समय हमारा मन कहीं और तो नहीं रहता है ? अक्सर जब हम अपने जीवन में परेशानी या दुःख का अनुभव करते है तब ही हम उन्हें अपनी प्रार्थना में याद करते हैं, और उनका अनुभव करते हैं,परन्तु जब हमारी प्रार्थना , हमारे ह्रदय के अंतःकरण से निकलेगी और उसमें सबके दुःखों का प्रतिबिम्ब होगा , तो हमारा परमदयालू पिता ईश्वर उसे जरूर सुनेगा और प्रसन्न हो कर उसे पूरा भी अवश्य करेगा।
प्रार्थना क्या है ?
- ईश्वर से सीधे बात - चीत करना ही प्रार्थना है ,
- जब हम परमेश्वर को अपने निकट महसूस करते हैं और अपने अंतःकरण की बात ,अपने दिल की बात अपनी वेदना को अपने पूरे विश्वास के साथ , दृणता से उसके समक्ष रखते हैं , इसे ही प्रार्थना कहते हैं।
- ईश्वर का मौन स्मरण भी प्रार्थना है।
- अपने प्रतिदिन के अनुभवों को ईश्वर साथ बाँटने की प्रक्रिया , प्रार्थना है।
" ढोंगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो,वे सभागृहों में और चौकों पर खड़े हो कर प्रार्थना करना पसंद करते हैं ,जिससे लोग उन्हें देखें , मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं। जब तुम प्रार्थना करते हो तो अपना कमरा बंद कर लो और एकांत में अपने पिता से प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता , जो एकांत को भी देखता है , तुम्हे पुरस्कार देगा। " ( मत्ती - ६ : ५-६ )
प्रार्थना का प्रभाव प्रभाव
" माँगो और तुम्हे दिया जाएगा ; ढूंढों और तुम्हें मिल जाएगा ;खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जाएगा;क्योंकि जो मांगता है ,उसे दिया जाता है।; जो ढूढ़ता है उसे मिल जाता है और जो खटखटाता है ,उसके लिए खोला जाता है। " ( मत्ती - ७ : ७ - ८ )
सामूहिक प्रार्थना
" मैं तुम से यह भी कहता हूँ - यदि पृथ्वी पर तुम लोगों में दो व्यक्ति एकमत हो कर कुछ भी मांगेगे ,तो वह उन्हें मेरे स्वर्गिक पिता की ओर से निश्चय ही मिलेगा। क्यूंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे होते हैं , वहाँ मैं उनके बीच उपस्थित रहता हूँ। " ( मत्ती - १८ : १९ - २० )
आदर्श प्रार्थना
" प्रार्थना करते समय गैर - यहूदियों की तरह रट नहीं लगाओ। वे समझते हैं कि लम्बी - लम्बी प्रार्थनाएँ करने से हमारी सुनवाई होती है। उनके समान नहीं बनो ,क्यूँकि तुम्हारे मांगने के पहले ही तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हे किन - किन चीजों की ज़रुरत है। " ( मत्ती - ६ : ७ - ८ )
प्रार्थना की शक्ति
प्रार्थना की शक्ति असीम है ,ईश्वर में पूर्ण विश्वास और भरोसा करके प्रार्थना करने पर, हमें ईश्वर की दिव्य शक्ति प्राप्त होती है, जिसके कारण हम तमाम ऐसे काम भी कर लेते हैं जो हमारे लिए अविश्वशनिय हैं। परमेश्वर दया सागर है ,हमें प्रतिदिन अपनी प्रार्थना में ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। हमें उनकी इच्छा को अपने लिए पह्चानना और स्वीकार भी करना चाहिए।
ईश्वर की इच्छा ,योजना एवं शक्ति
प्रायः हम केवल अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु ही प्रार्थना करते हैं ,परन्तु हमें ईश्वर की इच्छा के अनुसार अपने आप को तैयार करने की शक्ति के लिए प्रार्थना करना चाहिए। तब ईश्वर हमें वह प्रदान करेगा जो हमारी भलाई और हमारे जीवन के लिए जरूरी है।
ईश्वर भी हमसे मदद चाहते हैं
दूसरों की प्रार्थना का उत्तर देने के लिए ईश्वर को भी हमारी जरुरत पड़ती है ,यदि हम ईश्वर की जरुरत में उनकी सहायता करेंगें तो वह हमारी भी प्रार्थना का उत्तर देने के लिए, किसी अन्य व्यक्ति को हमारे पास भेज देगा। आपने देखा होगा की कभी - कभी आपकी जरुरत में कोई अपरिचित व्यक्ति अप्रत्यासित रूप से आपके पास आ कर बिना आपके आग्रह के आपकी बहुत बड़ी मदद करके चला जाता है। सोंचिए वह कौन था।
कभी - कभी जब लोगों को अचानक कोई आ कर बचा लेता है ,या कोई मदद कर देता है तो लोग बरबस बोलने को मजबूर हो जाते हैं ,और कहते हैं, आप तो हमारे लिए भगवान हैं।
कार्य प्रारम्भ करने के पहले प्रार्थना
प्राय अधिकांश लोग प्रार्थना को अपने जीवन में उचित महत्व नहीं देते हैं,जिसके कारण उनके जीवन में तरह तरह की अनेक समस्याएं आती रहती हैं, फलस्वरूप उनकी सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक,एवम नैतिक स्तिथि बिगड़ती जाती है और उनका जीवन अधोगति की ओर बढ़ता जाता है।
आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लगातार इतनी उन्नति होने के बावजूद लोगो के दिलों में असंतोष, क्रोध,अशहिश्रुणता ,एवं अनैतिकता लगातार बढ़ती जा रही है। इसलिए आज पूरे समाज में आध्यात्मिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है। इसके लिए प्रत्येक परिवार में सामूहिक एवं पारिवारिक प्रार्थना का आयोजन प्रतिदिन होना चाहिए तथा सभी को अपने जीवन में प्रार्थना को महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए।
जब भी हम कोई कार्य प्रारम्भ करते हैं ,या किसी यात्रा पर निकलते हैं, तब हमें थोड़ा सा समय जरूर निकल कर प्रार्थना करना चाहिए और ईश्वर से उस कार्य की सफलता और सम्पूर्णता के लिए शक्ति और मार्गनिर्देशन मांगते हुए पूरे कार्य को उसे समर्पित करना चाहिए।
ईश्वर प्रेम है , जो प्रेम नहीं करता , वह ईश्वर को नहीं जनता है।
" प्रार्थना करो , जिससे तुम परीक्षा में न पड़ो " ( लूकस - २२ : ४० )

Comments
Post a Comment