जीवन में आत्मा
आत्मा, शरीर और मन
आत्मा :
ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य की सृष्टि आत्मा के रूप में की है।
संत पौलुस गलातियों के नाम अपने पत्र में कहते हैं - आप लोग आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलेंगें तो शरीर की वासनाओं को तृप्त नहीं करेंगें। शरीर तो आत्मा के विरुद्ध इच्छा रखता है,और आत्मा शरीर के विरुद्ध। ये दोनों एक दुसरे के विरोधी हैं। इसलिए आप जो चाहते हैं। वही नहीं कर पाते । यदि आप आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलेंगे ,तो संहिता के अधीन रहेंगें। ( गलातियों ५ : १६-१८ )
पवित्रात्मा के ९ फल
" परन्तु आत्मा का फल है - प्रेम,आनन्द , शान्ति,सहनशीलता,मिलनसारी,दयालुता,ईमानदारी,सौम्यता,और संयम , इनके विरुद्ध कोई विधि नहीं है। जो लोग ईसा मसीह के हैं, उन्हें वासनाओं तथा कामनाओं सहित अपने शरीर को क्रूस पर चढ़ा दिया है। यदि हमें आत्मा द्वारा जीवन प्राप्त हो गया है , तो हम आत्मा के अनुरूप जीवन बिताएँ " (गलातियों ५ : २२ -२३ )
मन के लिए आत्मा का फल है - प्रेम ,
हृदय के लिए आत्मा का फल है - आनंद ,
आत्मा के लिए आत्मा का फल है - शांति ,
परिवार के लिए आत्मा का फल है - सहनशीलता ,
सम्बन्धियों के लिए आत्मा का फल है - मिलनसारी ,
समाज के लिए आत्मा का फल है - दयालुता ,
शरीर के लिए आत्मा का फल है - ईमानदारी ,
आचरण के लिए आत्मा का फल है - सौमयता ,
व्यवहार के लिए आत्मा का फल है - संयम ,
पवित्रात्मा के ७ दान
प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा , प्रज्ञा तथा बुद्धी का आत्मा ,सुमति तथा धैर्य का आत्मा , ज्ञान तथा ईश्वर पर श्रद्धा का आत्मा। वह ना तो जैसे-तैसे न्याय करेगा, न सुनी सुनाई के अनुसार निर्णय देगा।
( इसायाह ११ : २ - ३ )
पवित्रात्मा के ७ दान निम्न हैं ,
- प्रज्ञा
- बुद्धि
- उपदेश
- धैर्य
- ज्ञान
- ईश भय
- ईश भक्ति

पवितात्मा के ९ करिश्माई वरदान
" कृपादान तो नाना प्रकार के होते हैं ,किन्तु आत्मा एक ही है,सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं , किन्तु प्रभु एक ही है,प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही ईश्वर द्वारा सबों में सब कार्य संपन्न होते हैं. वह प्रत्येंक को वरदान देता है ,जिससे वह सबों के हित के लिए पवित्रात्मा को प्रगट करे। "
- किसी को आत्मा द्वारा - प्रज्ञा के शब्द मिलते हैं।
- किसी को उसी आत्मा द्वारा - ज्ञान के शब्द मिलते हैं।
- किसी को आत्मा द्वारा - विश्वास मिलता हैं।
- किसी को आत्मा द्वारा - रोगियों को चंगा करने का।
- किसी को - चमत्कार दिखने का।
- किसी को - भविष्याणि करने का।
- किसी को - आत्माओं की परख करने का।
- किसी को - अनोखी भाषा बोलने का
- किसी को - भाषाओँ की व्याख्या करने का वरदान देता है। (१ कुरिन्थियों १२ : ४ - १०)

शरीर
शरीर के जीवित रहने के लिए प्राण शक्ति का होना आवश्यक है।
(प्राण शक्ति के बारे में हम आगे बात करंगे। )
आज कल इंसान दुनिया की चकाचौंध में आ कर, दुनियावी बस्तुओं की खोज में इतना लीन हो गया है ,कि उसे अपने शरीर को जानने का समय और जिज्ञासा उसके पास नहीं है। वास्तव में हमारा शरीर पूरी एक व्यस्था है ,जिसमें अनेक प्रणालियाँ सामंजस्य बना कर कार्यरत हैं। शरीर , इन्द्रियों सहित मन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। शरीर मन के उपभोग के लिए एक ढांचा है। शरीर इसके तीन भाग हैं।
१- स्थूल शरीर ( Macro Cosm )
जो हमें दिखाई देता है ,वही स्थूल या भौतिक शरीर हैं। इसी के द्वारा हम सुख दुःख आदि का अनुभव करते हैं।
२- सूक्ष्म शरीर ( Micro Cosm )
सूक्ष्म शरीर ,हमारे भौतिक शरीर के आकर का ही होता है ,जो हमारे भौतिक शरीर में interpenetrate किए हुए होता है। इसके तीन भाग होते हैं।
- इनर औरा ( Inner Aura )
यह हमारे शरीर का साँचा है ,इसी के आकार का हमारा भौतिक शरीर रहता है।
- हेल्थ औरा ( Health Aura )
यह हमारे भौतक शरीर का फ़िल्टर है , जो ऊर्जा को छानता है। शरीर को स्वस्थ रखने में इसकी अहम भूमिका होती है
- आउटर औरा ( Outer Aura )
यह ह्मारे भौतिक शरीर का बाहरी कवच है , किसी भी विचार एवं भवननाओं का प्रभाव पहले इसी पर होता है। जब भी हम किसी से मिलते हैं तो सबसे पहले इसका प्रभाव आउटर औरा पर ही होता है।
३- कारक शरीर ( Astral Body )
स्थूल और सूक्ष्म शरीर का कारक है, यह शरीर।
हमारा शरीर असंख्य कोशिकाओं से बना है जो निरंतर नष्ट होती रहती हैं और उनके स्थान पर नई कोशिकाएं बनती रहती हैं।
हमारे शरीर में ११ मुख्या चक्र है
१- बेसिक चक्र ,२- सेक्स चक्र ,३-मेंग -मेग चक्र -४-नाभि चक्र ,
५-प्लीहा चक्र ,६-सोलर पलैक्सिस चक्र, ७-हृदय चक्र ,
८-कंठ चक्र ,९- आज्ञा चक्र ,१०-ललाट चक्र ,११-क्राउन चक्र
यही चक्र न केवल शरीर के प्राणभूत अंगों को नियंत्रित और उर्जित करते हैं वरन ये हमारे मनोवैज्ञानिक व् आध्यात्मिक स्तिथियों को भी नियंत्रित और प्रभावित करते हैं। इन्ही चक्रों के द्वारा प्राण शक्ति का प्रयोग करके शरीर में होने वाली बीमारियों को भी ठीक किया जा सकता है।
शरीर के १५ कुकृत्य
- व्यविचार,लम्पटता ,अशुद्धता,मूर्तिपूजा,बैर,
- मनमुटाव,क्रोध ,द्वेष ,स्वार्परता , रंगरलियाँ
- फूट , जादू - टोना , ईर्ष्या ,दलबन्दी ,मतवालापन,
"मैं आप लोगों से कहता हूँ ,जैसा की मैने पहले भी कहा - जो इस प्रकार का आचरण करते हैं , वे ईश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगें " ( गलातियों ५ : १९ - २१ )
- मन
जहाँ विचारों का आदान - प्रदान होता है ,संकल्प - विकल्प उठते हैं, वही मन है।
मन शरीर का प्रशासक है। मन सूक्ष्मं है।
मन के तीन भाग हैं।
- चेतन मन ,
- अचेतन मन ,
- अवचेतन मन
मन की तीन प्रक्रिया है :
- इच्छा ,
- विचार,
- क्रिया
मन के छः विकार हैं।
- काम
- क्रोध
- लोभ
- मोह
- मद
- मात्सर्य
मन का स्वभाव चंचल और हर समय बदलने वाला होता है।
मन जिस काम को करना चाहता है , उसे ना करें ,
और मन जिस काम को करना नहीं चाहता ,वही करें।
अपनी सारी मानसिक शक्तियों को अपने उत्तम लाभ के लिए उपयोग करें।
हमारे स्थूल शरीर और मन के बीच प्राण है ,जो दोनों को प्रभावित करता है ।
मन में विभिन्न भाव आते हैं - डर ,भय , शांति, छल - कपट, वीरता,कुशाग्रता आदि ,
मन शरीर के अंदर और बाहर विचरण करता रहता है। निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है की वास्तव में मन शरीर में किस भाग में स्तिथ है। मस्तिष्क और मन में बहुत अंतर है। मस्तिष्क स्थूल है ,और मन सूक्ष्म है। मस्तिष्क सो जाता है, परन्तु मन कभी नहीं सोता है।
मन, विचार को बुद्धि के अनुमोदन के लिए भेजता है। बुद्धि की स्वीकृति के उपरान्त मन इन्द्रियों को यथावत आदेश देता है। इन्द्रियाँ शरीर के आवश्यक अंगों को इसकी पूर्ती के लिए सक्रिय करती हैं।
शरीर कैसे काम करता है , आइए देखते हैं। जैसे .....
आँख देख कर वास्तु को मन के अर्पण कर देती है , मन बुद्धि से इसकी स्वीकृति लेता है , और को उस स्थान पर ले जाने के लिए आदेश देता है। इसी प्रकार शरीर की अन्य इन्द्रियाँ भी मन , बुद्धि , मस्तिष्क के ही सामंजस्य से काम करती हैं।
मन इन्द्रियों का राजा है ,शरीर की पांचों इन्द्रियाँ मन के आदेशनुसार ही काम करती हैं। आँख केवल देख सकती है ,कान केवल सुन सकता है ,नाक केवल सूंघ सकती है ,त्वचा केवल स्पर्श कर जिह्वा केवल स्वाद ले सकती है , परन्तु मन देख सकता है , सुन सकता है ,सूँघ सकता है , स्वाद ले सकता है और स्पर्श कर सकता है ,
मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण जरुरी है।
आप सक्षम हैं ,
प्रयास करें ,
आप कर सकते हैं।
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